.......जिंदगी की आपाधापी....इसकी दौडभाग.....
इसके गिले....शिकवे....वक्त ही नही मिल पाया....!
की कुछ जी पाती...! या कुछ वक्त अपने संग बिता पाती...
जब चाहा...इसके दामान से कुछ सीप अपनी झोली मैं डाल लू
तो पता ही नहीं लगा यह कब आगे बढ गयी और दे गयी कुछ...
अधूरे खवाब....कुछ बिखरी हुई उमीदे....जिनके सहारे इसको जीना ....
भी था....खुश भी रहना था..... और इससे मोहब्बत भी करनी थी...
कभी साथी आंसू थे.....तो कभी मेरा खुद का...अकेलापन.. मेरा हमसफ़र था...
कभी गिरती....कभी संभालती....बेमतलब सी...बेमानी सी.....तड़पाती सी....ये
चली जा रही थी....न किसी से कोई गिला....न कोई शिकवा....न किसी की चाहा....
न कोई माझी .... न कोई किनारा....न कोई बंधन.......
...बेतरतीब सा....बस...जीना था....!
और जाना था...उस पार...अकेले..यूहीं...!
पर....यह क्या....!
किसकी आवाज़ है ये....!
किसने मेरा नाम लिया....किसने पुकारा है मुझे...!
यहाँ तो कोई भी नहीं था... मुझे इस तरह पुकारने वाला....!
फिर आज अचानक यह सदा कैसी...!और क्यों .....
मैंने तो किसी को नहीं...बुलाया...किसी को याद नहीं किया..!
वहम होगा...! चलो...तुम्हारे कदम क्यों रुक गए..!
तुम किस सदा मे खुद से...बिछड़ने...को तैयार हो गयीं..
अचानक मुझसे मेरे अंतर्मन ने कहा....
कदम बढाया ही था....की फिर से किसी ने पुकारा...
और इस बार ...मेरा नाम....लिया...!
वो कैसे जानता है मुझे....!
मेरा नाम.....भी.....!
मैंने मुड़ के देखा...
कोई खड़ा था...
बोला ,''कहाँ हो, कब से पुकार रहा हूँ ''...
सुन क्यों नहीं रही हो...!
देखो न तुम्हारे लिए कब से खड़ा हूँ...थक गया हूँ.....!
कितना इंतज़ार करवाती हो....चलो मेरा हाथ पकड़ो...
हमें चलना है.....समय बहुत कम है....हम दोनों के पास..
और सफ़र बहुत लम्बा...तय करना है...! जल्दी करो...
किसी भी सवाल जवाब का वक्त नहीं है ....मेरे पास ...बस मेरा हाथ पकड़ो और चलो...
वैसे भी इतनी देर से मिली हो.....क्या पागल सी देखे जा रही हो.....!
उफ...तुम सोचती बहुत हो .....!
और मै...बस पागल सी ....घूरे जा रही थी...!
और...चल दिया वो मेरा हाथ पकड़ के...
क्यों....मुझे नहीं पता !
कहाँ....मुझे नहीं पता !
कौन है वो....मुझे ये भी नहीं पता ....!
उसका हाथ मैंने एक बार भी छोड़ने की कोशिश नहीं की...
.... उसका साथ मुझे बहुत अच्छा लगा...
.....मैंने कोई सवाल भी नहीं किया....!
पर मै बहुत ख़ुश थी...वो सच्चा था....!
वो मुझे प्यार करता था....बहुत....!
बेरंग सी...उदासियों सी शाम बनी ये जिंदगी...में
........... उसके साथ बहुत सारे रंग हैं...!
...उसके साथ बहुत सारे उजाले हैं ..!
...........उसके साथ बहुत सारे खवाब हैं...!
उससे जुडी बहुत सारी उमीदे हैं....!
.....उसके साथ जिंदगी बहुत खूबसूरत है....मुझे उसके साथ....
...बहुत दूर सफ़र पे जाना है...बहुत दूर....कहाँ...??
पता नहीं...शायद बहुत दूर....!!
इसके गिले....शिकवे....वक्त ही नही मिल पाया....!
की कुछ जी पाती...! या कुछ वक्त अपने संग बिता पाती...
जब चाहा...इसके दामान से कुछ सीप अपनी झोली मैं डाल लू
तो पता ही नहीं लगा यह कब आगे बढ गयी और दे गयी कुछ...
अधूरे खवाब....कुछ बिखरी हुई उमीदे....जिनके सहारे इसको जीना ....
भी था....खुश भी रहना था..... और इससे मोहब्बत भी करनी थी...
कभी साथी आंसू थे.....तो कभी मेरा खुद का...अकेलापन.. मेरा हमसफ़र था...
कभी गिरती....कभी संभालती....बेमतलब सी...बेमानी सी.....तड़पाती सी....ये
चली जा रही थी....न किसी से कोई गिला....न कोई शिकवा....न किसी की चाहा....
न कोई माझी .... न कोई किनारा....न कोई बंधन.......
...बेतरतीब सा....बस...जीना था....!
और जाना था...उस पार...अकेले..यूहीं...!
पर....यह क्या....!
किसकी आवाज़ है ये....!
किसने मेरा नाम लिया....किसने पुकारा है मुझे...!
यहाँ तो कोई भी नहीं था... मुझे इस तरह पुकारने वाला....!
फिर आज अचानक यह सदा कैसी...!और क्यों .....
मैंने तो किसी को नहीं...बुलाया...किसी को याद नहीं किया..!
वहम होगा...! चलो...तुम्हारे कदम क्यों रुक गए..!
तुम किस सदा मे खुद से...बिछड़ने...को तैयार हो गयीं..
अचानक मुझसे मेरे अंतर्मन ने कहा....
कदम बढाया ही था....की फिर से किसी ने पुकारा...
और इस बार ...मेरा नाम....लिया...!
वो कैसे जानता है मुझे....!
मेरा नाम.....भी.....!
मैंने मुड़ के देखा...
कोई खड़ा था...
बोला ,''कहाँ हो, कब से पुकार रहा हूँ ''...
सुन क्यों नहीं रही हो...!
देखो न तुम्हारे लिए कब से खड़ा हूँ...थक गया हूँ.....!
कितना इंतज़ार करवाती हो....चलो मेरा हाथ पकड़ो...
हमें चलना है.....समय बहुत कम है....हम दोनों के पास..
और सफ़र बहुत लम्बा...तय करना है...! जल्दी करो...
किसी भी सवाल जवाब का वक्त नहीं है ....मेरे पास ...बस मेरा हाथ पकड़ो और चलो...
वैसे भी इतनी देर से मिली हो.....क्या पागल सी देखे जा रही हो.....!
उफ...तुम सोचती बहुत हो .....!
और मै...बस पागल सी ....घूरे जा रही थी...!
और...चल दिया वो मेरा हाथ पकड़ के...
क्यों....मुझे नहीं पता !
कहाँ....मुझे नहीं पता !
कौन है वो....मुझे ये भी नहीं पता ....!
उसका हाथ मैंने एक बार भी छोड़ने की कोशिश नहीं की...
.... उसका साथ मुझे बहुत अच्छा लगा...
.....मैंने कोई सवाल भी नहीं किया....!
पर मै बहुत ख़ुश थी...वो सच्चा था....!
बेरंग सी...उदासियों सी शाम बनी ये जिंदगी...में
........... उसके साथ बहुत सारे रंग हैं...!
...उसके साथ बहुत सारे उजाले हैं ..!
...........उसके साथ बहुत सारे खवाब हैं...!
उससे जुडी बहुत सारी उमीदे हैं....!
.....उसके साथ जिंदगी बहुत खूबसूरत है....मुझे उसके साथ....
...बहुत दूर सफ़र पे जाना है...बहुत दूर....कहाँ...??
पता नहीं...शायद बहुत दूर....!!