Friday, April 29, 2011

कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये

मुझे क्या चाहिए, क्यों कब और कैसे?
ये बताने के लिए मेरे साथी शब्द ही तो ह,
मुझे  , जो दो पल बचे ह 
उनमे  तुम्हारा साथ चाहिए
 क्युकी जी भर के चाहती हूँ जीना
मैने  तपते रेगिस्तान की रेत पर
बहुत से दिन रैन
नंगे पाँव चल कर बिता दिए ह
और अब उन पगों पर छाले पड़ गए ह
मैं जब जब चलती हूँ काँटों पर 
लगता ह की कोई जख्मो पर नमक छिड़क रहा ह
मुझे अब एक शीतल सी फुहार चाहिय्र 
मैं चाहती हूँ की मेरे बच्चो को कुछ बनाने का अपना सपना
मैं तुम्हारे साथ   dekho , तुमारी तकलीफों को अपना कर
अपनी तकलीफे तुम्हारे साथ bantoo 

फिर वो दुःख , चिंता बस चिंतन बन के रह जाएँ
मैने बहुत से ख्वाब देखे ह
पर वक्त थोडा ह
इसलिए  तुमसे एक निवेदन ह
मेरे पास जो समयाभाव ह
उसे समझ कर , तुम जल्द
से जल्द मेरे  सपनो में रंग भर दो
कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये